33.1 C
New Delhi
Tuesday, October 15, 2024

विवाहित हों या अविवाहित या फिर रह रहीं हो लिव इन में.. हर महिला को है…

नई दिल्ली: बाल अधिकारों के सवाल पर ​भले ही दिल्ली और देश की सरकार फिसड्डी साबित हो रही हों और दिल्ली जैसे शहर में बाल विवाह का रोकथाम पूरी तरह से न हो पाने के आंकड़े सामने आ रहे हों लेकिन इस बीच देश के सर्वोच्च अदालत में महिलाओं के अधिकार से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। ये फैसला है महिलाओं के गर्भपात से जुड़ा, जिसमें सर्वोच्च अदालत ने प्रत्येक महिला को गर्भपात का अधिकार दिया है चाहे वे विवाहिता हों अविवाहित हों या फिर लिव इन रिलेशन शिप में रह रही हों।

अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा ​है कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। एकल और अविवाहित महिलाओं को भी गर्भावस्था के 24 सप्ताह में उक्त कानून के तहत गर्भपात का अधिकार है। जाहिर है सर्वोच्च अदालत का गर्भपात संबंधी फैसला एक निश्चित अवधी के लिए है यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत 24 सप्ताह में गर्भपात का अधिकार सभी को है। इस अधिकार में महिला के विवाहित या अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से उन महिलाओं को काफी राहत मिलेगा जो अब तक अनचाहे गर्भ को जारी रखने को विवश थीं।

बड़ी बात ये है कि अब अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार मिल गया है. इतना ही नहीं सर्वोच्च अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3-बी का विस्तार कर दिया है। बता दें कि सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के एबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था।

क्या था मामला

सर्वोच्च अदालत ने फैसला 25 वर्षीय एक अविवाहित युवती की याचिका पर सुनाया। उसने कोर्ट से 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे इसकी इजाजत नहीं दी थी। यह युवती सहमति से सेक्स के चलते गर्भवती हुई थी। उसने शीर्ष कोर्ट से गर्भपात की इजाजत देने की गुहार लगाते हुए कहा था कि वह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता किसान हैं। उसके पास अपनी आजीविका चलाने के इंतजाम नहीं हैं, इसलिए वह पेट में पल रहे बच्चे का पालन-पोषण करने में असमर्थ रहेगी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 जुलाई के आदेश में युवती को 24 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की इजाजत इसलिए देने से इनकार कर दिया था कि वह सहमति से बनाए गए संबंध की देन था।

क्या कहा न्यायालय ने

ऐतिहासिक फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उक्त कानून के नियम 3 बी के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करना अनुचित है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी के समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है। अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात से रोकना और सिर्फ विवाहित महिलाओं को अनुमति देना संविधान में दिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन की स्वायत्तता गरिमा और गोपनीयता का अधिकार एक अविवाहित महिला को ये हक देता है कि वह विवाहित महिला के समान बच्चे को जन्म दे या नहीं।

अदालत की टिप्पणी थी कि किसी कानून का लाभ संकीर्ण पितृसत्तात्मक रूढ़ियों के आधार पर तय नहीं करना चाहिए। इससे से कानून की आत्मा ही खत्म हो जाएगी।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Pic of The Day

- Advertisement -spot_img

Latest Articles